बीजेपी ने याद दिलाया मुलताई गोलीकांड
Multai Goli Kand : देश में इस वक्त किसान आन्दोलन चल रहा है| तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 70 दिन से धरने पर बैठे हैं| मोदी सरकार और किसानों में तनातनी की स्थिति है| किसान चाहते हैं कानून रद्द हो, सरकार चाहती है कानूनों में केवल संशोधन हो, दोनों ही अपनी –अपनी बातों पर अड़े हैं| और विपक्ष कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता मोदी सरकार की आलोचना का| ऐसा ही एक आन्दोलन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील में भी हुआ था| आज कांग्रेस किसान आन्दोलन को लेकर मोदी सरकार की खूब आलोचना कर रही है, लेकिन शायद वह उस वक्त को भूल गई है जब उनके राज में भी किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया था|
इस समय किसान आन्दोलन के कारण दिल्ली में जवानों और किसानों के बीच हिंसक झड़प हुई| पुलिस ने डंडे बरसाए, आंसू गैस के गोले भी दागे, लेकिन गोलियां नहीं बरसाई, जिससे की अन्नदाताओं को नुकसान हो| लेकिन कांग्रेस के राज में जब आन्दोलन हुआ था तो किसानों ने सीने को पुलिस की गोलियों ने छलनी कर दिया था| 24 किसानों की मौत हुई थी|
मुलताई गोली काण्ड (Multai Goli Kand) की पूरी कहानी
इतना जानने के बाद यदि आप मुलताई गोलीकांड के बारे में नहीं जानते होंगे तो आप भी उसकी पूरी कहानी जानना चाहेंगे| तो बात उस समय की है जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी| साल 1997-98 की घटना| मुलताई सोयाबीन के अच्छे उत्पादक क्षेत्रों में शामिल है| ऐसे में गेरुआ बीमारी के कारण फसलों की बर्बादी होनी शुरू हो गई| रही सही कसर बेमौसम बरसात ने पूरी कर दी| किसान बर्बाद हो चुके थे| उनकी कोई सुनने वाला नहीं था| सरकार के सामने हाथ फैलाए, सहायता मांगी, लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला|
इसके बाद जनता दल के प्रशिक्षण शिविर लेने वाले डॉ सुनीलम किसानों के पास पहुंचे| उन्होंने पूरे क्षेत्र का दौरा किया| तय हुआ कि 25 दिसंबर1997 को मुलताई में तहसील के सामने प्रदर्शन करेंगे| तय समय और दिन को किसान पहुंचे| आन्दोलन बढ़ने लगा| आसपास के लगभग 400 गाँवों के किसान इससे जुड़े| पंचायतों के बाद महापंचायत हुई| सरकार के खिलाफ नारेबाजी होने लगी|
9 जनवरी 1998 को बैतूल में महापंचायत में सरकार को चेतावनी दी गई कि उनकी मांगे नहीं मानी जाएगी तो मुलताई (Multai Goli Kand) किसान कार्यलय का ताला तोड़ दिया जाएगा| किसान चाहते थे कि उन्हें 5000 रुपए प्रति एकड़ जमीन का मुआवजा मिले| पर सरकार इसके लिए तैयार नहीं हो रही थी|
12 जनवरी का काला दिन
आखिरी वह दिन भी आया जब किसानों ने मुलताई में गाड़ियों को फूंक दिया| हंगामा किया| उनके हंगामें को रोकने के लिए पुलिस बन्दूक उठाकर चल दी| काफी देर समझाने के बाद भी जब किसानों ने अपना आन्दोलन समाप्त नहीं किया तो पुलिस ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी| मौके पर की किसानों की लाश बिछ गई|
इस घटना में 24 किसानों की मौत हुई थी| कई किसान घायल हुए थे| स्कूल में पढ़ने वाला एक बच्चा भी पुलिस की गोली का शिकार हुआ था| हालाँकि उसे बचा लिया गया| यह घटना इतनी ज्यादा भयावह थी कि आज भी उसका जिक्र होने पर मुलताई और आसपास के गाँव वाले सिहर जाते हैं| इस घटना की तुलना जलियावाला बाग़ हत्याकांड से भी की गई| सरकार ने इस मामले के लिए डॉ सुनीलम को जिम्मेदार बताकर अपना पल्ला झाड लिया था| कई किसानों पर भी मुकदमा चला| हालाँकि किसान नेताओं ने आरोप लगाया था कि ये सब कुछ कांग्रेस सरकार के कारण हुआ|
आज ये मामला फिर सामने इसीलिए आया क्योंकि भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने किसान आन्दोलन को लेकर कांग्रेस की आलोचनाओं का इस मामले को याद दिलाकर जवाब दिया|
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